बनारस यात्रा

 

बनारस यात्रा 

    बनारस घूमने की चाह बहुत सालों से थी , पर संयोग न बना। पूर्व में प्रयागराज , गोरखपुर से आगे न गया। इतिहास की पढ़ाई की है और साहित्य का शौक रहा है। दोनों में ही बनारस का विशेष स्थान है। महाजनपद के समय से लेकर , साहित्य में नीला चाँद , काशी का अस्सी , फिल्मों में मशान आदि से मन में तमाम छवि अंकित थी। 

    इस साल होली में विशेषरूप से बनारस जाने के लिए सोचा था। प्रिय मित्र प्रीतम सिंह , बनारस सदर  में ही तहसीलदार के तौर पर पदस्त है , उनसे अक्सर बात , मुलाकात होती थी तो तमाम आमंत्रण उनके भी थे। सुबह सुबह , गूगल मैप के सहारे , गाड़ी से निकले। फतेहपुर के हाईवे पर चाय पी। जब इलहाबाद पार किया तो मुझे पूर्वांचल की झलक दिखना शुरू हुयी। हाईवे से गुजरते हुए , किसी क्षेत्र का ज्यादा अनुमान न लग पाता है , इसके बावजूद ऐसा लग था कि अतीत की तरफ सफर कर रहा हूँ। 

    प्रीतम सिंह की कहानी पहले भी लिखी है , बहुत सज्जन , विनम्र , मेरे प्रति विशेष आदर व लगाव रखते है।  अपने सरकारी आवास पर बहुत अच्छी व्यवस्था कर रही थी. बड़ा सा घर था। स्नान आदि के बाद , उनके मगवाये बनारसी व्यंजन चखे। बनारस कचौड़ी तो बहुत फेमस है , खाकर मज़ा आ गया। मीठा भी बहुत अच्छा था। अलसुबह में निकलने व सफर की थकान के चलते आराम करने का मन था।  

    कुछ देर आराम के बाद प्रीतम के सौजन्य से एक बनारसी सज्नन हमारे साथ गाड़ी में थे जो कि आगे हमारे पथ प्रदर्शक बने। सबसे पहले हनुमान मंदिर गए। ट्रैफिक बहुत ज्यादा था। गाड़ी पार्क करने की जगह न थी। रास्ते भीड़ ही भीड़ थी. मंदिर में काफी जल्दी दर्शन हो गए।  उसके बाद बाबा विश्वनाथ मंदिर गए।  

    यहां की भीड़ देखकर हिम्मत डोलने लगी। दर्शन vip कोटे से हुए , पर उसमे भी एक कहानी बन गयी। चारों तरफ से लाइन लग के दर्शन हो रहे थे। एक अलग कम छोटी लाइन में लगकर मंदिर के कपाट तक गया। मै बस वो दूध चढ़ाने के बाद उसका नीचे तक जाना ही देख पाए। बाबा विश्वनाथ की मूर्ति देख ही न पाया। मेरे साथ मंदिर के प्रबंधन से जो साथ थे , उनसे बताया कि जब तक नजर आगे जाये , तब तो लाइन आगे बढ़ा दी गयी। इस बार वो और शॉर्टकट से , ले गए। अच्छे से दर्शन हुये। उन्ही से काफी इतिहास पता चला , प्राचीन कुएं का पानी पिया। काफी खुशी थी। बगैर सम्पर्क के उस भीड़ मै शायद दर्शन न कर पाता।  

    मंदिर में दर्शन के बाद , बनारस की भीड़ ,गलियों में वहां की संस्कृति को करीब से जानने का मौका मिला। एक जगह टमाटर चाट, पापड़ी चाट, आइसक्रीम , पानी बताशे खाये। वापस प्रीतम के आवास पर आराम किया। शाम को प्रीतम ने बनारस के घाट , गंगा आरती के लिए बोट का इंतजाम करा रखा था। नमो घाट से पीछे की तरफ आते कितने घाट दिखे , एक बढ़कर एक, सब जगह आरती शुरू हो गयी थी. गंगा में सैकड़ो बोट थे, हजारों तीर्थ यात्री। दिन में गर्मी , भीड़ में काफी परेशान हुआ था, बनारस को लेकर मेरा उत्साह मर गया था, दिल कर रहा लौट जाऊ, अब क्या ही घुमू। 

    पर शाम का नौका सफर पुरे दिन की थकान मिटा दी। ठंडी ठंडी हवा चल रही थी। नाव में बैठ , किनारे घाटों की भीड़ , पूजा का माहौल देखना बहुत सुखद था। बीच में मणिकर्णिका घाट दिखा , इसके बारे में खूब पढ़ा और सुना था। मुझे ऐसा लगता था कि वो गंगा के दूसरे साइड होगा पर यहां बीचोबीच देखकर , हैरान हुआ। उस घाट में जलती चिता , देख एक पल को दिमाग रुक सा गया। ज्यादातर घाट में आरती शुरू हो गयी थी , हमारी बोट जरा देर से निकली थी। इसलिए हमें सबसे आखिर वाले घाट आना पड़ा , दो घाट पास पास में थे , बोट से उतरकर बड़े आराम से आरती देखी। उन  छटा का को शब्दों में बयान करना कठिन है। अद्भुत, अद्वितीय , पारलौकिक सा। 

    उसी शाम मन थक चुका था , दिल में आया  कि रात को ही घर लौट जाऊ। प्रीतम दिन में व्यस्त थे , शाम को साथ में डिनर किया। डिनर के बाद गाड़ी वापसी के लिए मोड दी ,सुबह  के ५  बजे फिर से घर में थे। सुबह ४ बजे निकले थे। बनारस यात्रा से समझ आया कि कुछ जगह पर गाड़ी के बजाय पैदल घूमना चाहिए और सही से आनंद के लिए अकेले , बगैर किसी ताम झाम के साथ घूमना चाहिए। तामझाम से चीजे आसान तो हो जाती है पर जल्दी जल्दी में यात्रा व देशाटन से जो आनंद मिलता है , उससे मन वंचित रह जाता है। बनारस एक बार फिर से जाऊँगा पर सही मौसम व तरीके से , आराम व तसल्ली से घाट घाट , गली गली भटकूंगा , तभी मन को तृप्ति मिलेगी. 

©आशीष कुमार , उन्नाव।

    

    

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  1. सच में भैया , बनारस का नाम सुनते ही एक रस का आस्वादन होने लगता है मन आनंदित हो जाता है जिस तरह मां गंगा बनारस को पवित्र करती है और कल कल ध्वनि के साथ बहती है ठीक इसी प्रकार बनारस में धर्म का रस , मोक्ष का रस , शांति का रस, और अध्यात्म का रस समाहित है ।

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