लग्गड़ की दौड़

लग्गड़ की दौड़
आशीष कुमार

             राग दरबारी में एक पात्र है लग्गड़। जो कि तहसील में एक दस्तावेज की नकल पाने के लिये महीनों चक्कर लगाता है। नकल देने वाला बाबु कुछ रिश्वत की माॅग करता है न मिलने पर लग्गड़ को चक्कर लगवाता रहता है।

           कुछ ऐसा ही घटित हुआ हमारे साथ। 19 जून 2010 को मेरे पिता जी की आकस्मिक मृत्यु हो गयी थी। सरकारी योजना के तहत परिवार को एकमुश्त 20000 रू की मदद मिलनी थी। उस वक्त धन की वाकई बहुत जरूरत थी। फार्म भर दिया गया। अच्छा गाॅव में कुछ व्यक्ति इस तरह की दौड़ भाग में बहुत दक्ष होते है। कई लोग बता गये कि पाॅच सात हजार खर्च कर दो हम दिलवा देगें। मै उन्नाव जिले के मुख्यालय में काफी समय से रह रहा था। मुझे यकीन था कि कुछ न कुछ जुगाड़ कर मै रिश्वत देने से बच जाउगाॅ। उन्नाव के विकास भवन के पास में ही मै रहता था। अपने कनिष्ठ बन्धु को मैने समझा दिया कि रोज विकास भवन जाकर बाबू से मिलते रहो एक न एक दिन काम जरूर हो जायेगा।

            वर्ष 2010 के अंत से शुरू हुई दौड़ भाग अनवरत चलती रही। हमने भी सोच रखा था कि रिश्वत नही देनी है पैसा मिले चाहे न मिले। मैं सरकारी सेवा में आ गया। परिस्थितियाॅ काफी बदल चुकी थी। अब पैसा का कोई मतलब न था पर दौड़ भाग जारी थी। मेरे छोटे दोनो भाई चक्कर काटते रहे पर पैसा न मिला। बाबू ने भाई से एक मार्कर भी माॅग लिया।एक भाई ने दिमाग लगा कर सूचना के अधिकार के तहत दबाव बनाना चाहा। पता नही उनकी आर टी आई कहीं दूसरे विभाग पहुॅच गई। इससे भी बात न बनी। 

            कनिष्ठतम भाई ने अभय ने हार कर एक बाबू से रिश्तेदारी निकाली उनको 500 रू दिये। यह वर्ष 2012 की बात है। कई बार धन उन्नाव से गाॅव की बैंक तक भी पहुॅच गया पर बैंक मैनेजर ने उसे पुनः उन्नाव भेज दिया। समझ न आ रहा था किया क्या जाय। 

             घटनायें बहुत है उनका विश्लेषण किया जाना यहाॅ सम्भव नही। एक आम आदमी तक किसी सरकारी योजना का धन पहुॅच पाना बहुत कठिन है। विशेषकर जब आप लग्गड़ की तरह नियम से सरकारी काम कराना चाहे। 19 जून 2013 को पिता जी के निधन को 3 वर्ष हो गये। भाई ने खबर दी आज ही पूरे 20000 रू बैंक में माता जी के खाते में आ गये हैं।

                   विडम्बना यही है कि कभी इतने रू मेरे परिवार की वार्षिक आय भी न हुआ करती थी। सोचिये उस वक्त इस सहायता की कितनी जरूरत थी। आज यह मेरे 15 दिन का वेतन है। अब इसका मूल्य नहीं।
  यक्ष प्रश्न यह है कि क्या प्रशासन आने वाले लग्गड़ों की दौड़ को आसान कर सकेगा ? 

©ASHEESH KUMAR, UNNAO

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