वो गुमनाम लेखिका

अक्सर मै आहा जिन्दगी का जिक्र करता रहता हु पिछले दिनों सैनी अशेष के लेख पढ़े और बहुत प्रभावित हुआ। सोचा इनसे बात करनी ही चाहिए। दिमाग में विचार था कि सम्पादक को फ़ोन कर उनसे नंबर ले लूँगा।  
पता नही क्यू पर मुझसे रहा न गया और मैंने उनको गूगल से खोजना शुरु किया। कुछ ब्लॉग पर उनके कमेंट मिले , फेसबुक पर id भी मिल गयी। id मिलने पर उनकी टाइम लाइन को पढना शुरु किया।  यह एक प्रकार से खोज सी शुरु थी अधिक से अधिक जान लेने का मन था। आखिर उनके लेखो में जो जादू दिखा था वह सच में ही बहुत लाजबाब था।  
टाइम लाइन से ही पता चला कि वो स्नोवा बर्नो के सह – लेखक है। स्नोवा बर्नो ——-२००८ के आस पास उनकी कुछ कहानिया हंस में छपी थी। एक – दो मैंने भी पढ़ी थी क्या कमाल की कहानियाँ थी।  बहुत दिनों तक लेखिका के बारे में लोग कयास लगाते रहे कि आखिर एक अंग्रेज इतनी गहरी हिंदी में कहानी कैसे लिख सकती है।  ऐसा माना जाता रहा कि उनका छद्म नाम इस्तमाल कर कोई पुरुष ही यह कहानियाँ लिख रहा है. 

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