POEM : HOPE

उम्मीद 

इन दिनों जबकि 
सारी दुनिया 
परेशान,बेबस व मजबूर
सी है,
इन दिनों जबकि
आदमी बेहद परेशान,
भयभीत है 
और उसको भरोसा
न रहा अपने जीवन का
ऐसे उदासी, बेजान
खामोशी भरे दिनों में
भी मैं रहता हूँ
प्रफुल्लित,जीवन्त 
उत्साह से भरा
वजह केवल इतनी
कि इनदिनों के गुजरने 
के बाद मुझे उम्मीद है
कि तुम एक रोज मेरे पास
आओगी उतने ही करीब
जितना इन दिनों के पहले थी
उम्मीद है कि फिर से
स्पर्श कर सकूँगा
तुम्हारे मन को 
अन्तःस्थल को
उम्मीद है कि
देखूँगा तुम्हारी झील सी
गहरी आँखों में,
अपने लिए
पहली सी चमक
© आशीष कुमार, उन्नाव
1 अप्रैल, 2020।

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