इलाहाबाद पूर्व का आक्सफोर्ड (2)

इलाहाबाद पूर्व का आक्सफोर्ड (2)

पूर्व में मैने जिक्र किया था कि लगातार पढाई करने में इलाहाबाद का कोई
जवाब नहीं है । एक वाकया याद आ रहा है मेरी ट्रेन पयाग स्टेशन से रात में
3.50 बजे थी मै पास ही एक लाज में वऱिष्ठ गुरु के पास ठहरा था मै परेशान था
कि मै उतने सुबह कैसे उठ पाउगा ? गुरु ने कहा कि परेशान मत मैं उठा दूगा ।
मै बहुत थका था लेटते ही नींद आ गई । गुरु जी वर्णवाल वाली भूगोल पढ़ रहे
थे । रात में १ बजे नींद खुली तब भी गुरु
जी पढ़ रहे थे । मैं पुनः एक सो गया । 3 बजे मुझे उठाया तब भी वह पढ़ रहे
थे मुझे बहुत आश्चर्य हुआ मैंने पूछा कि क्या मेरे लिए जग रहे थे? वो बोले
कि मैं तो रोज ही 4 बजे तक जग कर पढता हूँ । यह 2008-09 की बात होगी मुझे
यह बात बहुत नयी लगी । एक स्कूल के दिनों में मम्मी रोज सुबह मुझे 5 बजे
उठा देती थी मैं कम्बल या चद्दर ओढ कर बैठता था उसका बहुत सहारा मिला करता
था मौका देख कर सो जाता था पर मम्मी बहुत सख्त थी बीच बीच में पूछती रहती
सो रहे हो मैं चिल्ला कर कहता कहॉ सो रहा हूँ । पर वो अक्सर मुझे सोते देख
मेरे सामने से किताब हटा कर पूछती पढ़ रहे हो? जाहिर है कि मैं पकड़ा जाता
क्योंकि चौक कर जगने पर देखता कि किताब सामने न होने पर भी चिल्ला कर बोल
रहा हूँ ।
तैयारी के दिनों मे कुछ घन्टे खुद ही पढ़ने लगा पर इलाहबाद
वाले गुरु की लगन देख कर असली गति आयी । पढ़ने का जनून सा हो गया । चितक जी
की भी बात जोड कर कहूं तो चाहे जितनी गर्मी लगे चाहे जितना पसीना बहे पढते
रहो कितना ही जाड़ा क्यों न हो पढते रहो किसी के लिए नहीं अपने लिए । आप
एक सफलता के लिए परेशान हो मैं कहता हूँ आप इतना करो तो सही असफलता नामक
शब्द आप के शब्द कोश से मिट जायेगा ।

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