RAIN
बेमौसम बारिश जैसे आज शाम बेमौसम बारिश हुई ठीक वैसे ही एक शाम तुम मेरे जीवन में आ गयी। ©आशीष कुमार, उन्नाव 6 मई, 2021।
बेमौसम बारिश जैसे आज शाम बेमौसम बारिश हुई ठीक वैसे ही एक शाम तुम मेरे जीवन में आ गयी। ©आशीष कुमार, उन्नाव 6 मई, 2021।
मेरी नजर में तुम तुम्हारी सूरत जैसे सौम्य मूरत तुम्हारी आँखे मीठा सा शर्बत तुम्हारी नजर कतई जहर तुम्हारे काले बाल जैसे रेशमी जाल तुम्हारी मुस्कान बसती मेरी जान तुम्हारे लब लाल गुलाब तुम्हारी सांसे दहकती आग तुम्हारी बातें शुद्ध शहद तुम्हारी कमर नदी का मोड़ तुम्हारे पाव पीपल की छांव तुम्हारा बदन अनमोल रतन
अघटित मेरी प्रिय तुमको वो कविता लिख रहा हूँ जो कई बार लिखकर मिटा दी मुझे तुम वो अपने तमाम पत्र फिर से लिख दो, जो तुमने तमाम बार लिखकर फाड् दिए थे। दोहरा दो वो तमाम पल जब तुमने मुझे फ़ोन करने के लिए उठाकर फिर रख दिया था। और हाँ उन्हीं कदमों को
आखिरी मुलाकात सुनों एक दिन अनायास ही कहोगी कि अब यह हमारी अंतिम मुलाकात है याकि फिर एक रात देर में करोगी आखिरी फ़ोन बतलाने के लिए कि अब न हो सकेगी कभी हमारी बात उस दिन, उस रात के संवेदनशील क्षणों में आपको जरा भी ख्याल न रहेगा कि कैसे तुम मिटा रही हो
तुम्हारी ‘न ‘ प्रिय अगर तुम मापना चाहो मेरे प्रेम की हद तो सुनो ये जो मजाक में भी जो तुम मुझे अस्वीकार करती हो या कह देती हो ‘नहीं’ यह मुझे गहरे तक उदास कर जाता है, पल में लगती हो कि तुम कितनी अजनबी जैसे कि मेरा कोई हक न बाकी रहा हो। ©
उम्मीद इन दिनों जबकि सारी दुनिया परेशान,बेबस व मजबूर सी है, इन दिनों जबकि आदमी बेहद परेशान, भयभीत है और उसको भरोसा न रहा अपने जीवन का ऐसे उदासी, बेजान खामोशी भरे दिनों में भी मैं रहता हूँ प्रफुल्लित,जीवन्त उत्साह से भरा वजह केवल इतनी कि इनदिनों के गुजरने के बाद मुझे उम्मीद है कि
कविता : ताजा गुलाब “जब तुम मेरी करीब होती हो मुक्त मन से, आवरण रहित, तुम मुझे एक ताजे गुलाब सरीखी लगती हो अति कोमल, नाजुक भीनी भीनी खुसबू से भरी” 10 जनवरी, 2020,😌 © आशीष कुमार, उन्नाव
कविता 5 : हिसाब किताब जब मैं कहता हूँ कि तुम्हें पाने से पहले खो चुका हूँ तो अक्सर तुम नहीं समझ पाती कि मेरे कथन का निहितार्थ, दरअसल तुम ज्यादा दूर की सोचती ही नहीं, नहीं बनाती हो लंबे चौड़े सुव्यवस्थित, सौदेश्य नियम तुम बस वर्तमान में जीती हो हर पल, हर क्षण का
kavita 05: Hisab – Kitab Read More »
निष्पक्ष “पक्ष में होना सबसे आसान है विपक्ष में जरा मुश्किल पर, सबसे मुश्किल होता है निष्पक्ष होना । सत्ता के साथ अक्सर आ जाते है तमाम लोग कम ही टिकते विपक्ष में निष्पक्ष तो दुर्लभ से हैं ।” © आशीष कुमार, उन्नाव, उत्तर प्रदेश।
पर सच तो यह है कि यहाँ या कहीं भी फर्क नही पड़ता । तुमने जहां लिखा है ‘ प्यार ‘ वहाँ लिख दो ‘ सड़क ‘ फर्क नही पड़ता । मेरे युग का मुहावरा है : ‘ फर्क नही पड़ता ‘। केदारनाथ सिंह ( नई कविता)