फर्क नही पड़ता है

पर सच तो यह है कि यहाँ या कहीं भी फर्क नही पड़ता । तुमने जहां लिखा है ‘ प्यार ‘ वहाँ लिख दो ‘ सड़क ‘ फर्क नही पड़ता । मेरे युग का मुहावरा है : ‘ फर्क नही पड़ता ‘। केदारनाथ सिंह ( नई कविता)

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