चाँदनी चंदन सदृश
” चांदनी चन्दन सदृश हम क्यों कहे, हाथ हमें कमल सरीखे क्यों दिखे , हम तो कहेंगे कि चांदनी उस सिक्के सी है जिसमें चमक है पर खनक गायब है ।” जगदीश कुमार नई कविता में नए उपमानों पर जोर देते हुए ।
” चांदनी चन्दन सदृश हम क्यों कहे, हाथ हमें कमल सरीखे क्यों दिखे , हम तो कहेंगे कि चांदनी उस सिक्के सी है जिसमें चमक है पर खनक गायब है ।” जगदीश कुमार नई कविता में नए उपमानों पर जोर देते हुए ।
मैं नया कवि हूँ इसी से जानता हूँ सत्य की चोट बहुत गहरी होती है ; मैं नया कवि हूँ इसी से मानता हूँ चश्में के तले ही दृष्टि बहरी होती है, इसी से सच्ची चोटे बाँटता हूँ झूठी मुस्काने नहीं बेचता सर्वेसवर
पर सच तो यह है कि यहाँ या कहीं भी फर्क नही पड़ता । तुमने जहां लिखा है ‘ प्यार ‘ वहाँ लिख दो ‘ सड़क ‘ फर्क नही पड़ता । मेरे युग का मुहावरा है : ‘ फर्क नही पड़ता ‘। केदारनाथ सिंह ( नई कविता)