kavita 05: Hisab – Kitab
कविता 5 : हिसाब किताब जब मैं कहता हूँ कि तुम्हें पाने से पहले खो चुका हूँ तो अक्सर तुम नहीं समझ पाती कि मेरे कथन का निहितार्थ, दरअसल तुम ज्यादा दूर की सोचती ही नहीं, नहीं बनाती हो लंबे चौड़े सुव्यवस्थित, सौदेश्य नियम तुम बस वर्तमान में जीती हो हर पल, हर क्षण का […]
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