Unoccurred

अघटित
मेरी प्रिय
तुमको वो कविता लिख
रहा हूँ जो कई बार
लिखकर मिटा दी 
मुझे तुम वो अपने तमाम पत्र
फिर से लिख दो, 
जो तुमने तमाम बार लिखकर 
फाड् दिए थे।
दोहरा दो वो तमाम पल
जब तुमने मुझे फ़ोन करने के
लिए उठाकर 
फिर रख दिया था।
और हाँ उन्हीं कदमों को
फिर से गति दो
जो मुझसे मिलने के लिए 
बढ़ाकर रोक लिया था। 
© आशीष कुमार, उन्नाव।
26.04.2021

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