मैं किंग नहीं किंगमेकर हूँ

    साल 2012 -13 की बात है , अहमदबाद में एक्साइज इंस्पेक्टर  के तौर पर जॉब कर रहा था , उन्हीं दिनों चुनाव में ड्यूटी लगी।  अहमदाबाद से कुछ दूर दंधुका तालुका में। मेरा सर्विसलांस-(चुनाव में अवैध धन का प्रयोग न होने पाए )  का काम था। एक महीने पहले से ड्यूटी शुरू हो गयी थी। 

    अहमदाबाद से धधुका की दुरी कुछ ज्यादा थी ,जिसे रोज आ जाकर करना मुश्किल था। सीधा कोई साधन न था। मैंने एक सीनियर (सुपरिंटेंडेंट ) सर को अपनी प्रॉब्लम बतायी उन्होने कहा कोई दिक्क्त नहीं वहाँ उनका कोई रिश्तेदार था।  बोले उससे मिल लेना सारी हेल्प मिल जाएगी। मैंने कुछ आशंका जाहिर कि तो बोले तुम कुछ न सोचो , बस एक बार उससे मिल लेना।  

    अगले दिन धंधुका पहुँचा , दिन में अपनी ड्यूटी ज्वाइन करके , उन सज्जन को फोन किया और अपने सीनियर का जिक्र किया। बोले- हा ठीक है. यही पेट्रोल पंप पर आ जाओ। कुछ देर बाद मैं धंधुका के मुख्य चौराहे पर स्थित एक पेट्रोल पंप पर था। वही एक ऑफिस में उनसे मुलाकात हुयी। उस समय वहाँ काफी भीड़ थी। मुझे अब ठीक से न चेहरा याद है न ही नाम पर उनको देख कर कुछ ऐसा हुआ कि कई सालों तक उनकी छवि अंकित रही। काफी रोबीला चेहरा , सर पर बाल छोटे छोटे , लम्बी चौड़ी पर्सनालिटी। 

    जब लोग चले गए तो उनसे बात हुयी। मेरे मन में बड़ी जिज्ञासा थी कि वो करते क्या है , मुझे उस समय तक पता न था कि पेट्रोल पंप उनका है या किसी और का. जब कुछ बातें हुयी तो ऐसा समझ आया कि इनका बड़ा कारोबार है , खुद से कुछ बता न रहे थे। आप ने देखा होगा कि छोटा आदमी ही बेवजह दिखावा करता है , एक लेवल के बाद आदमी जो धन या पद में उच्चतम स्तर पर जा पहुँचता है वो अपने बारे में कम से कम बात करता है। उन सज्जन की यही बात नोटिस कि मैं उन्हें काफी हलके में ले रहा था और वो थे कि मुस्कुरा रहे थे। बातों बातों में मैंने पूछा – आप चुनाव नहीं लड़ते या ऐसा ही कुछ। उस वक़्त भी कुछ वहां बैठे थे बोले भैया को क्या जरूरत, अभी जो इधर बैठे थे वो राज्य सभा सांसद थे, उनके बगल में विधायक जी थे, ये जिला पंचायत अध्यक्ष जी है। मै हैरान हो गया। भैया जी बोले – मैं किंग नहीं , किंगमेकर हूँ , मुझे इसमें ज्यादा अच्छा लगता है।” 

    मुझे एक पल को यकीन न हुआ , भाई ये सज्जन कौन हैं , इस स्तर के लोग यहाँ बैठ के मीटिंग कर रहे थे। दरअसल मै एक ऐसे प्रदेश से सम्बन्ध रखता हूँ , जहाँ का छुटभैया नेता के काफिले में दो चार गाड़ी जरूर होती है। वहां इस स्तर को लोग शांति से मीटिंग कर रहे थे।  

    शाम हो चुकी थी , मैंने भैया से बोलै – कहाँ रुकूंगा। उन्होंने किसी को आवाज देकर बुलाया और बोले वो सरकारी वाला गेस्ट हाउस खुलवा दो जाकर। मेरे पुराने पाठकों को लोथल वाली पोस्ट याद होगी। ये उसी समय की बात है। उस टाइम  कुछ फूलों की तस्वीर पोस्ट की थी , ये उसी गेस्ट हाउस का गार्डन थे। गेस्टहॉउस वाला बता रहा था , इसी गेस्टहॉउस में कुछ दिन पहले CM भी आकर रुके थे। उस गेस्ट हाउस का केयर टेकर पहले आनाकानी कर रहा था , फिर भइया जी के नाम पर तुरंत एक कमरा खोल दिया।  शाम को वहीं व्यक्ति लेने आया , शाम को भोजन उन भैया के घर था। मेरे मन में उनके घर को लेकर अलग सी कल्पना थी , जब घर पंहुचा तो वो एक बहुत बड़ा सा घर घर था। एक बुजुर्ग थे जो रसोई में थे। मैं अकेला खाना खा रहा था और वो गर्म गर्म खाना बनाकर दे रहे थे। कुछ बात हुयी , गुजराती मुझे ज्यादा आती न थी। यही समझा कि इधर तमाम गेस्ट आते ही रहते है और उनका काम सबके लिए खाना बनना होता है।  रात में उन भैया का फोन आया पूछा कोई दिक्क्त तो नहीं। मैने कहा नहीं सब बहुत अच्छा है। 

     मुझे वहां २ या ३  दिन रहना पड़ा , उसके बाद मुझे गाड़ी और कुछ पुलिस का स्टाफ ड्यूटी के लिए मिल गया। उन्हीं लोगो ने ड्यूटी के बाद , किसी न किसी की कार रुकवा के अहमदाबाद रोज आने जाने का इंतजाम करा दिया। 

    मेरे मन उन सज्जन की छवि बहुत सालों तक बनी रही , उनके प्रभाव का मन में बड़ा असर हुआ। उनका बोलना ” किंग नहीं , किंगमेकर ” बड़ा गजब लगता।  सच में पर्दे के पीछे रहकर शक्तिशाली प्रभाव रखना , उसका अलग ही आनंद है। भले दुनिया आपको बहुत न जानती हो पर  आप के नाम से काम हो जाये, उसकी बात ही अलग होती है।     

©-आशीष कुमार, उन्नाव , उत्तर प्रदेश।  

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