Gulal film

“गुलाल”फ़िल्म  

बात 2011..12 की होगी। उन्नाव से अहमदाबाद ट्रैन से आ रहा था। उन दिनों स्लीपर डिब्बे से चलना होता था। ट्रैन में बहुत सफर किया और अनुभव से जाना कि जिंदगी सही में स्लीपर डिब्बे में जीवन्त रहती है। 

सहयात्रियों बातचीत करते हुए सफर बड़े मजे में कट जाता है। कितने ही प्रकरण, किस्से सुने, सुनाये गए। जब से AC डिब्बों मे चलना शुरू हुआ, किसी सफर में 10 शब्द से ज्यादा न बोले गए होंगे। जाने कैसा ये बदलाव है.. शब्दों में भी इतनी मितव्ययिता..।
तो बात उस ट्रैन यात्रा की.. एक हमउम्र लड़का भी सामने बैठा था। बात फ़िल्मों की शुरू हो गयी। बातों बातों में उसने कहा-“गुलाल देखी?” 
मैंने कहा “नहीं”। नाम सुनकर लगा ये अपने टेस्ट की न होगी। गुलाल मतलब रंग..प्रेम मोहब्बत.. भई अपने को ऐसी फिल्में जरा भी न भाती। पर उस सहयात्री ने इतनी जबरदस्त तारीफ की मन हो रहा था कि काश अभी देख डाला जाय। 
खैर सफर खत्म हुआ और खोज शुरू हुई कि गुलाल फ़िल्म कैसे मिले। उन दिनों टोरेंट का दौर था। लोग फिल्मों को पेन ड्राइव / हार्ड डिस्क में लोड करके एक दूसरे से शेयर कर लिया करते थे। इसी किसी जुगाड़ से गुलाल फ़िल्म मिली होगी।
जिस दिन से मिली तब से आज तक दर्जनों बार देखी होगी। एक एक शब्द, डायलॉग रोंगटे खड़े कर देने वाले। समझ बढ़ी तो पता चला कि ये अनुराग कश्यप ने ही लिखी व बनाई है ,तो उनकी और भी फिल्में देख डाली। पर ‘गुलाल’ जैसी बात न मिली।
अहमदाबाद में ठेले वाले मोमफली के छोटे छोटे दानों वाली किस्म , बालू में गर्म करके बेचते हैं। उसका स्वाद आम मूमफली से कही हटके होता है, बहुत ही स्वादिष्ट। वो  चीज कहीं और देखी नहीं।मुझे वो बहुत पसंद थी। जिस वीकेंड पर ऑफिस से आते समय वो ठेलिया  दिख गयी तो समझो एक बेहतरीन शाम बन गयी।
वो छोटे वाले गर्मागर्म सिंग दाना (मूमफली), एक बियर की बेहद ठंडी बोतल और सामने टीवी/लैपटॉप पर गुलाल को मगन होके देखना…आय हाय मजे ही मजे।
फ़िल्म की शुरुआत में वो कमरा दिखाने वाला, बाँसुरी वाला, रानशा.. उसका वो डायलॉग..
जो कुछ न करता लॉ करने आता…दिलीप का होस्टल जाते वक्त रामलीला वाले पात्र..फिर कमरे में जो रैंगिग होती है..
दुबारा रानशा का दिलीप बदला लेने जाना  और मेरे पास मां है वाला डायलॉग.. हर दृश्य बड़ा ही गजब का है। 
केके मेनन, पीयूष मिश्रा और उनका वो अजीबोगरीब साथी..वो आरम्भ है प्रचंड वाला गाना.. माही गिल का अभिनय..
माही गिल को उसी टाइप के रोल में कई जगह देखा.. अपहरण, साहब बीबी गैंगेस्टर.. सब जगह मुझे परफेक्ट लगी। ऐसा लगता है कि फ़िल्म नहीं अपने आस पास को ही देख रहे हैं।
बातें तो बातें है उनका अंत कहाँ.. अब बाकी फिर कभी ..जैसे मुझे उस अजनबी से गुलाल जैसी मूवी मिली, आपको भी एक मूवी अनुशंसित करना चाहता हूँ.. “मनोरमा सिक्स फ़ीट अंडर”। आप भी कुछ इस तरह के टेस्ट वाली मूवी बता सके तो जरूर बताइये…
विदा।
आशीष कुमार, उन्नाव। 
02अप्रैल, 2022। 

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